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फिर पतझर का मौसम आया” पढ़ें *राजेश शुक्ला”काँकेरी”* की कविता ।

झरते हैं पेड़ों से पत्ते,

फिर पतझर का मौसम आया।

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लगता है कोई रोग लगा,

या पेड़ों पर मौत का साया।

लगी है बढ़ने धूप की गर्मी,

सूखते हैं सारे जंगल।

मौसम के परिवर्तन ने तो,

जंगल को है खूब सताया।

 

झरते हैं पेड़ों से पत्ते,

फिर पतझर का मौसम आया।

 

लगता है डर पेडों को यह,

क्या होगा इस उपवन का।

गुम हो गई है शीतल छाया,

सूखा गला है मधुबन का।

पत्तों के सर-सर की सरगम,

गुम होती वीराने में।

डूब रही पेड़ों की आशा,

सुर सूना है कानन का।

संगीत भरे हरियाले वन में,

सूनेपन ने नीड़ बनाया।

झरते हैं पेड़ों से पत्ते,

फिर पतझर का मौसम आया।

यह तो केवल सृष्टि का,

वस्त्र बदलने का क्रम है।

इस मौसम से डरना कैसा,

यह सृष्टि का नियम है।

फिर से हरियाली आएगी,

पेड़ों पर पत्ते आएँगे।

सर-सर की सरगम फिर होगी,

यही सृष्टि का लक्षण है।

हरियाली फिर से बिखरेगी,

सृष्टि ने संदेश सुनाया।

झरते हैं पेडों से पत्ते,

फिर पतझर का मौसम आया ।     

           *राजेश शुक्ला”काँकेरी”*

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About Khileshwar Netam

मैं खिलेश्नेवर नेताम, Talk India Digital का मुख्य संपादक हूं। पत्रकारिता मेरे लिए सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी और सेवा का माध्यम है। वर्षों से मैं निष्पक्ष, सत्य और जनहितकारी पत्रकारिता के सिद्धांतों पर काम करता आ रहा हूं।

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